Suryakant Tripathi

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर हिंदुस्तान का बंटवारा तीन भागों में चाहते थे Ambedakar Wants To Divide India in Three Parts, Hindustan for Hindus, Pakistan For Muslims And Charmistan For His Community

देश की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान को लागू किया गया इस संविधान के निर्माण में 296 संविधान सभा के सदस्य थे जिसमें नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद ,सरोजिनी नायडू, अंबेडकर और सैकड़ों लोग थे 11 महीने 18 दिन में इस संविधान का निर्माण किया गया लेकिन 11 महीने 18 दिन में कुल 166 घंटे काम करके इस संविधान को बनाया गया
हमारे संविधान में कुल 395 आर्टिकल है लेकिन पिछले 72 वर्षों में करीब 98 से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं
साफ शब्दों में कहें तो जिस संविधान में 395 आर्टिकल है उसमें 98 संशोधन का मतलब वह संविधान पुराना रह ही नहीं गया जिससे साफ संकेत मिलता है कि संविधान में साइक्लो कमियां थी जिन्हें आवश्यकता अनुसार समय-समय पर दूर किया गया

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 9891 में मध्यप्रदेश में हुआ था डॉक्टर अंबेडकर को उनके उच्च शिक्षा के लिए काफी सम्मान किया जाता है और सम्मान के दृष्टि से देखा जाता है लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का देश की आजादी में योगदान ना के बराबर था एक ऐसा व्यक्ति जो विदेशों से पढ़कर बैरिस्टर बना था उस व्यक्ति ने अपने कुंठित भावना और द्वेष के कारण देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे जेलों में बंद भारतीयों का कोई केस नहीं लड़ा ।
यह हैरान करने वाली बात है कि कोई व्यक्ति जिसे इतिहास में इतना महत्व दिया जाता है वह व्यक्ति कुंठित मानसिकता और स्वर्ण विरोध की वजह से देश के महान वीरो का किस तक नहीं लड़ा जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया ।
जब देश को जरूरत थी ऐसे बारिश टर्की उस समय डॉक्टर अंबेडकर ने हिंदुस्तान को ही बांटने की कोशिश की और काफी हद तक को हिंदुओं को दो भाग में बांटने में कामयाब हो गए ।
बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर हिंदुस्तान का बंटवारा तीन भागों में चाहते थे हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान मुसलमानों के लिए पाकिस्तान और तथाकथित दलितों के लिए चर्मिस्तान ।
लेकिन जब डॉक्टर अंबेडकर को संविधान निर्माता का ऑफर दिया गया तो वह इस बात पर राजी हो गए कि देश का बंटवारा केवल दो भागों में ही होगा ।
एक कुंठित मानसिकता का व्यक्ति जिसे ब्राह्मण समाज से इतनी नफरत थी कि उसने आजादी के बाद से तथाकथित झूठे ब्राह्मणवाद का भ्रम फैला कर समाज को बांटने का काम किया ।
देश की आजादी मैं अगर योगदान की बात की जाए तो सबसे पहले आजादी की लड़ाई का बिगुल मंगल पांडे ने फूंका था ।
डॉक्टर अंबेडकर ने शुरू से ही 1 विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व किया वह हमेशा से इस पक्ष में थे की दलितों को देश में ज्यादा मौका मिले क्योंकि दलितों पर उनके अनुसार काफी अत्याचार हुए हैं ।
जब देश पर मुगलों का राज था तब हर एक जाति का व्यक्ति मुगलों का गुलाम था चाहे वह दलित हो हिंदू हो सिख हो मुसलमान हो उसके बाद जब देश पर अंग्रेजों ने राज किया तभी भी भारत के हर एक जाति वर्ग का व्यक्ति अंग्रेजों का गुलाम था ।
लेकिन कुछ तथाकथित मूर्ख कहते हैं कि ब्राह्मणों ने दलितों पर काफी अत्याचार किए और वह यह भूल जाते हैं कि उस समय मुगलों के बाद अंग्रेजों के गुलाम सभी थे तो फिर इन तथाकथित दलितों पर अत्याचार कब हुए किसने की ।
बहुत सारी किताबों में आने को कहानियां सुनने को मिलती है कि दलितों को कुएं से पानी पीने के लिए रोका जाता था और भीमराव अंबेडकर को भी कई बार रोका गया था
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब कुंठित मानसिकता वाले व्यक्ति को पानी पीने कोई नहीं मिला तो वह इतने वर्षों तक जीवित कैसे रह गया उसे तो पानी के बिना तड़प तड़प कर मर जाना चाहिए था
ऐसी अनेकों बातें हैं लेकिन आज देश में जिस तरह से एक विशेष वर्ग के लोगों को शोषित के रूप में पेश किया जाता है वह वर्तमान समय के सबसे बड़े शोषक है ।
देश की आजादी के समय ब्राह्मणों की जनसंख्या कुल आबादी का करीब 19% था लेकिन आज यह करीब 5% पर आ कर रुक गया है ।
लेकिन शोषित समाज कौन है तथाकथित दलित जो व्यक्ति दलित का मतलब ही नहीं जानता है वह दलित दलित चलाता है दलित कोई विशेष जाति नहीं होती दलित का मतलब होता है समाज का हर व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सामाजिक रूप से शिक्षा के दृष्टि से पिछड़ा है जिसका सामाजिक शोषण हुआ है हर व्यक्ति दलित है लेकिन अंबेडकर की कुंठित मानसिकता में सबसे ज्यादा ब्राह्मण समाज का शोषण किया है ।
आज देश का प्रधानमंत्री यह कहता है कि हम तो बाबा साहब की वजह से प्रधानमंत्री बन पाए हैं ।
वक्त घर में छुप कर बैठने का नहीं है अपने हक की लड़ाई लड़ने का है अपने हक के लिए अपने घरों से निकलने का है ।
अगर हम एक अच्छा समृद्ध हिंदुस्तान की कल्पना करते हैं तो हमें इस संविधान को ही जला देना चाहिए जैसा कि हिंदू विरोधी डॉक्टर अंबेडकर ने 1953 में कही थी ।
हमारा संविधान एक ग्रंथ के जैसा है इसमें करीब 395 आर्टिकल्स है जो कि 1935 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से नकल किया गया है गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट को अंग्रेजों ने भारत की समृद्ध के लिए नहीं बल्कि भारत को गुलाम बनाने के लिए किया था और उसी को नकल करके लिखने में 11 महीने 18 दिन गुजर गए , ऐसे महान ज्ञानी थे डॉ आंबेडकर जिन्हें नकल करके लिखने में 11 महीने लग जाते हैं ।
डॉक्टर अंबेडकर पूरी जिंदगी कन्फ्यूजन में ही थे कभी वह मुसलमान बनना चाहते थे कभी वह खुद को दलित कहते थे कभी वे बौद्ध धर्म को अपनाते थे, और अंत समय में ऐसे नकल किए गए संविधान को हिंदुस्तान की जनता पर थोप दिया जिसको भारत पर राज करने के मकसद से बनाया गया था । उसमें उनका भी कुछ स्वार्थ था क्योंकि जो व्यक्ति देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले महान योद्धाओं का केस नहीं लड़ सकता जो व्यक्ति आजादी के समय जिस वक्त हमें एकता की जरूरत थी उस वक्त हिंदुस्तान को ही जाति के नाम पर बांट दिया ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न दिया गया, ऐसे कुंठित मानसिकता वाले व्यक्ति को संविधान निर्माता बनाया गया और ऐसे कुंठित मानसिकता वाले व्यक्ति के नाम पर आज के राजनेता वोट बैंक की राजनीति करते हैं ।
आज हिंदुस्तान पिछड़ा है तो इसका एक बहुत बड़ा कारण डॉक्टर अंबेडकर है और उनके द्वारा सौंपा गया अंग्रेजो के द्वारा बनाया गया 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट है
आज दुनिया कहां से कहां पहुंच गई लेकिन भारत आज भी कितना पिछड़ा देश है और भारत केस पिछड़ेपन में सबसे बड़ा योगदान डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और उनके संविधान का है जहां पर योग्यता को नहीं विशेष वर्ग को मौका मिलता है ।
आज देश की युवा पीढ़ी पढ़ाई करने के बाद विदेश चली जाती है क्योंकि वहां पर उनकी योग्यता को महत्व दिया जाता है ।
आज इतिहास में भले ही डॉक्टर अंबेडकर को एक महापुरुष की संज्ञा दी जाती है लेकिन इस कुंठित मानसिकता वाले व्यक्ति ने हिंदुस्तान को काफी पीछे धकेल दिया ।
इस हिंदुस्तान को सोने की चिड़िया कहा जाता था उसे तो अंग्रेजों ने लूट लिया लेकिन जो हिंदुस्तान लूटे जाने के बाद सोने की चिड़िया कैसे बन सकता था उसे डॉक्टर अंबेडकर और उनके संविधान ने कनखजूरा बना कर छोड़ दिया ।
देश के सुनहरे भविष्य और भारत की दुनिया में एक अलग और महान छवि के लिए सबसे पहले इस अंग्रेजो के द्वारा बनाए गए 1935 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट को तथाकथित भारत के संविधान को सबसे पहले बदलना होगा ।
अंत में बस इतना ही की अंबेडकर का विरोध हम इसलिए नहीं कर रहे हैं कि वह एक अलग समाज एक विशेष समाज से है बल्कि इसलिए हो रहा है कि उन्होंने संविधान पर आते समय एक विशेष वर्ग का ही बस ध्यान रखा जो कि उनकी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है ।

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